कहानी संग्रह >> अगला यथार्थ अगला यथार्थहिमांशु जोशी
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हिमांशु जोशी की हृदयस्पर्शी कहानियों का संग्रह...
अक्षांश
पता नहीं क्यों मुझे लगता है, किसी दिन कोई पत्र आएगा और एक ही क्षण में मेरा सारा भाग्य बदल जाएगा। मेरी अंतहीन यातनाएं, जिन्हें मैं सदियों से निरंतर सह रहा हूं, समाप्त हो जाएंगी।
सच, उस पत्र के बारे में जब-जब सोचता हूं, मुझे अजीब-सा लगता है। एक विचित्र-सी अनुभूति होती है। ऑफिस से घर आते समय मैं प्रायः रोज़ सोचा करता हूं, आज तो वह निश्चित ही आया होगा। किंतु न आने पर मैं निराशं नहीं होता। क्योंकि जानता हूं, यदि आज न भी आया तो न सही, कल या उससे आगे आने वाले कल या उससे और आगे आने वाले किसी एक 'कल' तो उसे अवश्य ही आना है।
कुछ विचित्र-सी घटनाएं घटित होती हैं मेरे साथ। हां, कल भी कोई ऐसा ही भाव मेरे मन में था। मैं लॉन में, बेंत की आरामकुर्सी पर टिका, गर्दन लटकाए, दोनों पांव दूर तक फैलाए कोई अख़बार पढ़ रहा था कि सहसा मेरी दृष्टि पार्क वाले चौराहे पर पड़ी !
एक के बाद एक मछली की तरह फिसलती, चमकती रंगीन कारें पत्थर-सी काली ठोस नहर पर अबाध गति से नावों की तरह बह रही हैं। तभी एक अनहोना-सा विचार कौंधता है। मैं देखता हूं, रिंकी पुस्तकों का बड़ा-सा बस्ता थामे चहकती-हंसती उस मोड़ पर से दौड़ती हुई आ रही है। उसने कैनवस के सफेद जूते, सफेद मोजे और दूध के झाग-सी सफेद स्कर्ट पहनी है। सुनहरे बालों में गहरे लाल रंग का रिबन, हवा में हिलता हुआ, बुरुंश के फूल का-सा गुच्छा लग रहा है।
मेरी सबसे छोटी बहन का नाम है रिंकी। अब से लगभग तीन साल पहले, इसी मोड़ पर, इसी समय स्कूल से लौटते हुए एक ट्रक से कुचलकर उसकी मृत्यु हुई थी।
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